स्वर्ण मंदिर एवं श्री माता वैष्णो देवी की यादगार शैक्षिक यात्रा

ढ़लते सूरज और वातावरण में बहती सर्द हवाओं भरी शाम को हम देव संस्कृति विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के विद्यार्थी दिनांक 04.10.23 को शैक्षिक भ्रमण पर निकले, जो प्रारंभ से अंत तक हमारे लिए उत्साह एवं उल्लास युक्त रहा । इस पूरे सफर पर हमे देशभक्ति, अध्यात्म और हर्ष से ओतप्रोत होने का अवसर प्राप्त हुआ। 

हमारी यात्रा शुरु हुई रात 09 बजे हरिद्वार रेलवे स्टेशन से , जहाँ से हमने अमृतसर पंजाब के लिए ट्रेन पकड़ी। पूरी रात मैने और मेरे मित्रो ने ट्रेन मे भ्रमण के विषय मे उत्सुकता भरी चर्चा की। और प्रातःकाल हम अपने पहले भ्रमण स्थल पर पहुंच गए ।
श्री हरिमन्दिर साहिब सिख धर्मावलंबियों का सबसे पावन धार्मिक स्थल या सबसे प्रमुख गुरुद्वारा है जिसे दरबार साहिब या स्वर्ण मन्दिर भी कहा जाता है। यह भारत के राज्य पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित है और यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण है। पूरा अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा हुआ है। स्वर्ण मंदिर में हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।



अमृतसर का नाम वास्तव में उस सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु राम दास ने स्वयं अपने हाथों से किया था। यह गुरुद्वारा इसी सरोवर के बीचोबीच स्थित है। इस गुरुद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है, इसलिए इसे 'स्वर्ण मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। पूरे दिन यहां भ्रमण के बाद हमने लंगर किया जिसका स्वाद मे हमे अपनेपन का जायिका और आशिष की मिठास प्राप्त हुई। अब हमारा अगला भ्रमण स्थल रहा, वाघा बॉर्डर।
अमृतसर से लगभग 32 किमी दूर स्थित, वाघा पाकिस्तान का एक गाँव है जो ऐतिहासिक ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित है जो अमृतसर और लाहौर के बीच से गुजरता है। रैडक्लिफ़ रेखा या भारत और पाकिस्तान को विभाजित करने वाली सीमा रेखा, भारत के विभाजन के दौरान, गाँव के भारतीय हिस्से में यहाँ खींची गई थी। इस सीमा पार का नाम उस गांव से लिया गया है जहां यह स्थित है और इसलिए इसे वाघा बॉर्डर कहा जाता है। विभाजन के समय, प्रवासी भारत से पाकिस्तान जाने के लिए इस सीमा पार का उपयोग करते थे।1959 से दोनों देश यहां झंडे उतारने की रस्म को दैनिक अनुष्ठान के तौर पर आयोजित करते आ रहे हैं। अगस्त 2017 में, भारत ने वाघा सीमा के भारतीय हिस्से अटारी में 110 मीटर का ध्वजस्तंभ खड़ा किया था। जवाब में, पाकिस्तान अपनी तरफ 122 मीटर का ध्वजदंड लेकर आया। भारत की ओर का ध्वजस्तंभ देश में सबसे ऊंचा है जबकि पाकिस्तान की ओर का ध्वजदंड दक्षिण एशिया में सबसे ऊंचा माना जाता है।वाघा बॉर्डर की यात्रा अमृतसर में करने के लिए शीर्ष चीजों में से एक है । इस समारोह को देखने के लिए हर शाम यहां बड़ी संख्या में पर्यटक जुटते हैं। इन लोगों के लिए यह महज एक सीमा समारोह नहीं बल्कि राष्ट्रीय गौरव का प्रदर्शन है। उत्साह इतना है कि आगंतुक अक्सर समारोह शुरू होने से पहले राष्ट्रगान गाते हैं और अचानक नृत्य करने लगते हैं।




जिस स्थान पर समारोह होता है वह एक स्टेडियम की तरह बनाया गया है और इसमें आगंतुकों के लिए बैठने की व्यवस्था है। भारत की सीमा सुरक्षा बल की महिला गार्ड 2011 से इस समारोह का हिस्सा रही हैं। इस सफर ने तो अब हमे आस्था के साथ - साथ देशभक्ति की भावना से भी ओतप्रोत कर दिया था। जिसके बाद आगे के सफर के लिए हमारी जिज्ञासा और बड़ गयी ।
इसके बाद रात मे मन मे ढेरो यादे एवं शांति के। अनुभव के साथ हमने अमृतसर से कटरा के लिए प्रस्थान किया। इसके बाद कटरा मे हमने कुछ विश्राम करने के बाद शुरु की, वैष्णोदेवी की अलौकिक यात्रा। जहाँ पूरी ट्रेस्किंग के दौरान हमे हमारे विभागाध्यक्ष एवं शिक्षकों का अनुभव प्राप्त हुआ। जिसने हमारी ट्रेस्किंग को टेक्निकली और सरल कर दिया। वैष्णो देवी मंदिर को श्री माता वैष्णो देवी मंदिर भी कहा जाता है और वैष्णो देवी भवन देवी वैष्णो देवी को समर्पित एक प्रमुख और व्यापक रूप से सम्मानित हिंदू मंदिर है। यह भारत में जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश के भीतर त्रिकुटा पहाड़ियों की ढलान पर कटरा, रियासी में स्थित है।





 मंदिर को दुर्गा को समर्पित 108 महा (प्रमुख) शक्ति पीठों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिन्हें वैष्णो देवी के रूप में पूजा जाता है। दुर्गा के प्रमुख पहलू होने के कारण, हिंदू वैष्णो देवी को काली, सरस्वती और लक्ष्मी का अवतार मानते हैं। मंदिर श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड (एसएमवीडीएसबी) द्वारा शासित है, जिसकी अध्यक्षता अगस्त 1986 में जम्मू और कश्मीर सरकार ने की थी वैष्णो देवी तीर्थ स्थान समुद्र तल से 5 हजार 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और बेस कैंप कटरा से माता का दरबार जिसे भवन भी कहते हैं तक पहुंचने के लिए करीब 13 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है। मान्यता है कि माता वैष्णो देवी ने त्रेता युग में माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में मानव जाति के कल्याण के लिए एक सुंदर राजकुमारी का अवतार लिया था। उन्होंने त्रिकुटा पर्वत पर तपस्या की थी। बाद में उनका शरीर तीन दिव्य ऊर्जाओं महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के सूक्ष्म रूप में विलीन हो गया। इसके बाद अगले दिन हमे भैरव बाबा के लिए चढ़ाई शुरु की। वैष्णो देवी से भैरव बाबा की चढ़ाई काफी कम हैं. अगर देखा जाए तो दोनों स्थान पास में ही हैं. दोनों स्थान के बीच अधिक दुरी नहीं हैं. अगर आप वैष्णो देवी मंदिर से भैरव बाबा के दर्शन करने के लिए जाते हैं. तो आपको 1.5 किलोमीटर की चढ़ाई करनी होगी । जिसे हमने लगभग 1 घंटे मे पार कर लिया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ,भैरौंनाथ ने कन्या रूपी मां का हाथ पकड़ लिया लेकिन माता ने अपना हाथ भैरौं के हाथ से छुड़वाया और त्रिकूट पर्वत की ओर चल पड़ी। भैरौं उनका पीछा करते हुए उस स्थान पर आ गए। भैरौं का युद्ध श्री हनुमान से हुआ जब वीर लंगूर निढाल होने लगे तो माता वैष्णो ने महाकाली के रूप में भैरौं का वध कर दिया। जिसके बाद अब हमने अपने भीतर इस दिव्य तीर्थस्थान की अमिट सकारात्मकता को समेटा और कटरा के लिए उतरना शुरु किया।




और शाम को कटरा से हरिद्वार के लिए ट्रेन बैठकर नए विचारो एवं यादगार लम्हो के साथ हमने अपनी शैक्षिक यात्रा का अंत किया। वास्तव में यह यात्रा हमारे लिए ज्ञान, नए विचार एवं सकारात्मकता के साथ अनुभव से भरी थी। जहां हमने  इन तीन दिनो हर एक सकारात्मक भाव का आनंद लिया।

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