देवभूमि उत्तराखण्ड
उत्तराखण्ड पावन धरती एवं प्राकृतिक सुंदरता
के कारण संपूर्ण विश्व में विख्यात हैं। भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश और पर्वतराज
हिमालय का मनोहर उत्तराखण्ड़ राज्य का प्रकृति के प्रति अलौकिक सौंदर्य का वरदान कहा
जाता है। हिमालय की गोद में शान्त वातावरण में योग और ध्यान करने के लिए उत्तराखण्ड़
सबसे अच्छा विकल्प है।यहाँ के धार्मिक स्थलों में दर्शन करने पर मन को बहुत शांति का
अनुभव होता है। हरा-भरा प्राकृतिक माहौलयहाँआने वाले पर्यटकों का मन मोह लेता है। देवों
की भूमि के नाम से पूरे भारत में मशहूर उत्तराखण्ड़ पर्यटकों का सबसे पसंदीदा राज्यों
में से एक है। प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक स्थलों की वजह से यह राज्य हर साल देश-दुनिया
के लाखों पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है। उत्तराखण्ड़ में महादेवी गंगा का उद्गम
स्थल स्थित होने के साथ-साथ चार प्रसिद्ध धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ एंव केदारनाथ भी यहीं मौजूद है।
उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति
उत्तराखण्ड राज्य का अधिकांश उत्तरी भाग वृहद्तर
हिमालय श्रृंखला का भाग है, जो ऊँची हिमालय चोटियों और हिमनदियों से ढका हुआ है, जबकि निम्न तलहटियाँ सघन वनों से ढकी हुई हैं । हिमालय
के विशिष्ठ पारिस्थितिक तन्त्र बड़ी संख्या में पशुओं जैसे भड़ल, हिम तेंदुआ, तेंदुआ और बाघ, पौंधो और दुर्लभ जड़ी-बूटियों पायी
जाती है। राज्य का लगभग 87 प्रतिशत भू-भाग पर्वतीय है । इस राज्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं चीन शासनाधीन तिब्बत तथा नेपाल देश से लगी हुई है,
एवं दक्षिण में उत्तर प्रदेश व उत्तर-पश्चिम में हिमालय प्रदेश की सीमा लगी है। पूर्व
में काली नदी के पश्चिमी तट से शुरू होकर पश्चिम में टौंस नदी के पूर्वी तट तक, उत्तर में तिब्बत के दक्षिण ढलान से
लेकर, दक्षिण में शिवालिक की तराई तक फैली हैं। इस क्षेत्र में धरातलीय संरचना के अनुरूप
जलवायु में बहुत विभिन्नता पाई जाती है। दिन
के समय गर्मी पड़ती है, किन्तु रात को तापमान हिमांक से नीचे
का तापमानयहाँअनुभव किया जा सकता है। यहाँ भूमि में अधिक नमी होने के कारण वनों की संख्या अधिक है ।
उत्तराखण्ड राज्य का इतिहास
उत्तराखण्ड का इतिहास पौराणिक है। उत्तराखण्ड का शाब्दिक
अर्थ उत्तरी भू भाग का रूपान्तर है। इस नाम का उल्लेख प्रारम्भिक हिन्दू ग्रन्थों
में मिलता है, जहाँ पर केदारखण्ड (वर्तमान गढ़वाल) और
मानसखण्ड (वर्तमान कुमांऊँ) के रूप में इसका उल्लेख है। उत्तराखण्ड प्राचीन
पौराणिक शब्द भी है जो हिमालय के मध्य फैलाव के लिए प्रयुक्त किया जाता था।
पौराणिक कथा के अनुसार माता सती के जले हुए शरीर को देखकर भगवान शिव का वैराग्य
उमड़ पड़ा। जिसके पश्चात् वह माता सती के देह को कंधे पर डालकर आकाश - भ्रमण करने
लगे। ऐसी स्थिति में माता सती के जहाँ-जहाँ पर शरीर के अंग गिरे, वहाँ -वहाँ पर शक्ति पीठ हो
गए। माता सती के नयन गिरेने का स्थान नैनादेवी नन्दा देवी, नाभि
गिरने का स्थान माया देवी एवं दक्ष प्रजापति की राजधानी कही जाने वाला स्थान हरिद्वार
की उपनगरी कनखल आदि भी देवभूमि उत्तराखण्ड ही स्थित है। उत्तराखण्ड का इतिहास
गौरवशाली है। यह महान सम्राटों और साम्राज्यों जैसे कुशनस, कुदिनस, कनिष्क, समुद्रगुप्त, कतुरिअ, पलाश, चन्द्रस और पावरा की मुख्य
विशेषताएं के साथ इसकी उत्पत्ति और विकास का एक लंबा इतिहास है। उत्तराखण्ड के
इतिहास के बारे में बात करे तो यह कि यह संदर्भ कई पवित्र हिन्दू शास्त्रों में
मिलता कहा जा सकता है। अंग्रेज़ इतिहासकारों के अनुसार हूण, शक, नाग, खस आदि जातियाँ भी हिमालय
क्षेत्र में निवास करती थी। पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम
से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख है।
उत्तराखण्ड राज्य का प्राकृतिक
सौंदर्य
राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना
के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के
कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। इसके अलावा राज्य में हरिद्वार, देवप्रयाग,गौरीकुंड, टिहरी, ऋषिकेश, धरासू, उत्तरकाशी इत्यादि
स्वयं में अपनी एक अलग ही पहचान लिए मौजूद है। उत्तराखण्ड राज्य में
पवित्र स्थलों के होने के साथ-साथ भारत के बहुत से राष्ट्रीय उद्यान भी मौजूद हैं।
राज्य में स्थित कुछ महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान जैसे जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान
(रामनगर), फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (नैनीताल) और गंगा की देवी राष्ट्रीय उद्यान
(चमेली जिला) अपने सौदर्य के कारण पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है।
खण्डाः पंच हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ।
केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः॥
अर्थात् हिमालय क्षेत्र में नेपाल, कुर्मांचल (कुमाऊँ), केदारखण्ड (गढ़वाल), जालन्धर (हिमाचल प्रदेश)
और सुरम्य कश्मीर पाँच खण्ड है।
उत्तराखण्ड की दिव्य संस्कृति
इस प्रदेश की नदियाँ भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक
महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उत्तराखण्ड अनेक नदियों का उद्गम स्थल है। यहाँ की
नदियाँ सिंचाई व जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख संसाधन है। मां गंगा का प्रारम्भ
अलकनन्दा व भागीरथी नदियों से होता है, एंव यमुना नदी का उद्गम क्षेत्र
बन्दरपूँछ के पश्चिमी यमनोत्री हिमनद में है। इस नदी में होन्स, गिरी व आसन मुख्य
सहायक हैं। इनके अलावा राज्य में काली, रामगंगा, कोसी, गोमती, टोंस, धौली गंगा, गौरीगंगा, पिंडर नयार आदि
प्रमुख नदियाँ हैं तथा नैनीताल, भीमताल, लोखम ताल, पार्वती ताल, इत्यादि यहीं स्थित
हैं। लोक कला की दृष्टि
से उत्तराखण्ड बहुत समृद्ध है।
यहाँ के लोक
गीतों में न्योली, जोड़, झोड़ा, छपेली, बैर व फाग प्रमुख
होते हैं जिनकी रचना आम जनता द्वारा की जाती है। इसलिए इनका कोई एक लेखक नहीं होता
है, यह सुनने में अत्यंत मनमोहक
होते है, एंव देवी-देवताओं से लेकर
अंछरियों की पूजा धार्मिक नृत्यों के अभिनय द्वारा सम्पन्न की जाती है। उत्तराखण्ड
में त्यौहारो का भी विशेष महत्व है,यहाँलगभग हर
महीने कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है।यहाँपर देवीधुरा मेला, नंदा देवी मेला, उत्तरायणी मेला
आदि अत्यंत प्रसिध्द हैं।
देशप्रेम से विशेष नाता-
उत्तराखण्ड
के निवासियों में देश भक्ति की भावना अधिक देखने को मिलती है। उत्तराखण्ड में जन्में कालू सिंह महारा, गोविंद बल्लभ पंत,
जवाला दत्त जोशी आदि ने भारत की स्वतंत्रता में अपना
बहुमूल्य योगदान दिया है, आज गढ़वाल राइफल्स भारतीय सेना की प्रनुख थलसेना रेजिमेंट
में से एक है। देश की सेना में हर 100वां सैनिक उत्तराखण्ड का है। उत्तराखण्ड
का नाम सदैव भारतीय सेना के गौरव से जुड़ा है, करगिल युद्ध और सेना के कई विशेष
अभियानों में उत्तराखण्ड के सैनिको की विशेष भूमिका रही है।
उत्तराखण्ड की विकास यात्रा
आंदोलनकारियों के संघर्ष और बलिदान के बल पर पृथक उत्तराखण्ड राज्य का गठन 9 नवम्बर
2000 को हुआ । उत्तराखण्ड 22 वर्ष की युवा
ऊर्जा से ओतप्रोत है । अवस्थापना विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा, उद्योग, मानव संसाधन, कानून व्यवस्था के क्षेत्र में प्रदेश
विकास की ऊंचाइयां भी छुई हैं।
उत्तराखण्ड के अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद
से ही औद्योगिक विकास के लिए कई कदम उठाए गए। इस समय प्रदेश में 330 बड़े और 68888 सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग हैं। इनमें कार्यरत कार्मिकों की संख्या
4.66 लाख से अधिक है। ये सभी उद्योग राज्य में 52 हजार करोड़ से अधिक का पूंजी निवेश कर रहे हैं। ‘इको-टूरिज्म’ की अनंत संभावनाएं उत्तराखण्ड
में छिपी हुई हैं। प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण उत्तराखण्ड की वादियां पर्यटकों की
पसंद हैं। इसके साथ ही यहाँ के वन क्षेत्रों में ईको टूरिज्म एवं पर्यावरण आधारित पर्यटन
की गतिविधियां भी खूब झोली भर रही हैं। राज्य के संरक्षित व आरक्षित वन क्षेत्रों
में ईका टूरिज्म की गतिविधियों से अब तक 17.38 करोड़ का राजस्व सरकार को मिल चुका है।
उत्तराखण्ड राज्य
में पहाड़ी स्थानों पर समशीतोष्ण शंकु आकार के वृक्षों से घिरे वन मिलते है, इसके विपरीत मैदानी वाले क्षेत्रों में नम पतझड़ वाले विशालकाय वन स्वयं
में रम्य है। उतराखंड ऋषि मुनियों की भूमि है। उतराखंड का
प्राकृतिक सौदर्य स्वर्ग के समान है। जहां पर विभिन्न देवस्थलों के साथ-साथ
गंगा-यमुना जैसी नदियों का उद्गम स्थल भी है। उत्तराखण्ड भारतवर्ष के अनेक महान राज्य
में से एक है। अत: उत्तराखण्ड राज्य प्राकृतिक सौंदर्य एंव
रमणीक सांस्कृतिक विशेषताओं से युक्त स्वर्ग से कम नहीं। देवभूमि उत्तराखण्ड आस्था
और श्रध्दा की पतीत एवं पावन भूमि है।
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