शारदीय नवरात्रि श्रध्देय की विशेष कक्षा से.. (2023 )

 

शारदीय नवरात्रि श्रध्देय की विशेष कक्षा से.. का प्रथम दिन


नवरात्रि का प्रमुख महत्व यह है कि इस अवसर पर मां दुर्गा की पूजा की जाती हैजो हिन्दू धर्म में शक्ति की प्रतीक हैं। यह नौ दिनों तक विभिन्न रूपों में उनकी पूजा की जाती है और उनके दिव्य आराधना के माध्यम से शक्ति की प्राप्ति का अवसर प्राप्त होता है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिकसांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ हैइसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं।

ऋषियोंमुनियोंतीर्थंकरोंअवतारों की इस पावन भूमि से ज्ञान की दोनों धाराएँ आदिकाल से अविरल रूप से बहती चली आई हैं। ज्ञान की वो धाराजो हमसे बाहर को बहती हैवो विज्ञान कहलाती है और ज्ञान की वो धाराजो हमें- हमारे सत्यस्वरूप में प्रतिष्ठित करती हैवो आध्यात्मिक ज्ञान कहलाती है। भारत की भूमि का यह सौभाग्य रहा है कि इसके गर्भ से उस उच्चस्तरीय ज्ञान की एक नहींवरन सैकड़ों धाराएँ अविच्छिन्न रूप से बहती हुई आई हैंउनमें सबसे पवित्र धारा श्रीमद भगवदगीता की धारा है।

योग का मुख्य उद्देश्य है आत्मा को परमात्मा के सन्निकट प्रकट करना। योग हमारे कार्यों को शुद्ध करने के लिए हैयोग मन को नियंत्रित करता है और इंद्रियां और योग को भक्ति के साथ सर्वोच्चता से जोड़ता है। इसके अनेक मार्ग ऋषियों और महर्षियों ने देशकाल और पात्र के अनुसार खोज कर निकाले हैं। किसी में शारीरिक विधियों को प्रधानता दी हैकिसी में मानसिक वृत्तियों को वशीभूत करने पर जोर दिया है। इसी प्रकार श्रीमद् भगवदगीता मेंविषाद योगकर्मयोगब्रह्मयोगकर्म सन्यास योगआत्मसंयम योगज्ञानविज्ञान योगभक्ति योग आदिकितनी ही प्रणालियां आत्मा को ऊंचा उठा कर परमात्मा तक पहुंचाने की बताई गई हैं। ईश्वर उनके लिए बिल्कुल समीप होता वे ईश्वर की बातें सुनते हैं और अपनी उससे कहते हैं। आत्मा की समीपता में बैठा हुआ अंतःकरण अपनी दिव्य इन्द्रियों की सहायता से इस कार्य को आसानी से पूरा कर सकता है। यह अत्यन्त सूक्ष्म ब्रह्म शब्दविचार तब तक धुंधले रूप में सुनाई पड़ता है जब तक कषाय-कल्मष आत्मा में बने रहते हैं। जितनी आन्तरिक पवित्रता बढ़ती जाती हैउतने ही यह दिव्य संदेश बिलकुल स्पष्ट रूप से सामने आते हैं। 

 

                              शारदीय नवरात्रि श्रध्देय की विशेष कक्षा से.. का द्वितीय दिन


मां दुर्गा के नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यह ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारणी तथा तप का आचरण करने वाली।


माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता है। कहा जाता है कि अपने पूर्व जन्म में जब यह हिमालय के घर में पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थी तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को अपना पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी और इसी पुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया।

ऐसे ही तपश्चार्य हेतु योग साधना में ध्यान का अति महत्वपूर्ण स्थान है। ध्यान के माध्यम से साधक ध्यान के आखरी पड़ाव समाधि को प्राप्त कर परमात्मा में विलीन हो जाता है। हमारे देश में लाखों ऋषियों ने योग साधना के पथ पर ध्यान का अभ्यास करके परमात्मा को प्राप्त किया है। ध्यान करने से पूर्व ध्यान का स्थानआसानवस्त्र आदि का चयन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। जिसका विशेष वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता में किया गया है।

 

 


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