काकभुशुण्डी के साथ मेरा संवाद....


दिवाली से दो दिन पहले मैं भी सब लोगों की तरह दिवाली मनाने के लिए घर निकल गई। मुझे वैसे तो पता था कि क्या होने वाला है, फिर भी रास्ते भर बस में बैठे – बैठे घर जाकर बजार से समान लेने, घर सजाने और छत पर लाइट लगाने जैसे कामों का अंदाजा लगा रही थी। फिर अचानक बस चलना शुरु हुई और मैं पूरे रास्ते सड़को पर त्यौहार की रौनक को महसूस करने लगी। देखते ही देखते रास्ता भी खत्म हो गया, शायद मैं बहुत खुशमनसीब हुँ कि, मुझे घर जाने के लिए मेरे दोस्तो की तरह घण्टों का सफर नहीं करना पड़ता, बस फिर क्या, इतनी ही बात सोचते – सोचते घर भी आ गया। अंदर जाते ही मैंने सबसे पहले पापा को घर की छत पर लाइट लगाने के लिए पूछा, क्योंकि ये काम मुझे बचपन से बहुत पसंद हैं। मैं सारी लाइटें लेकर छत पर चले गई, और छत के हर छोर पर लाइट लग ही गई थी कि ,अचानक मेरी नजर एक कौवे पर पड़ी , जो बड़े ध्यान से मुझे ही देख रहा था। पहले तो मैं सोच में पड़ गई, फिर मम्मी की बात याद करते हुए उसे मजाक - मस्ती में प्रणाम दादा जी कहते हुए नीचे चली आई। आखिरकार जिस पल का मुझे इंतेजार था वो भी आगया, शाम के 7 बज गए और मैं गंगा तट पर बनी जगमक देखने के लिए अपने छत के सबसे ऊपरी भाग पर जाकर बैठ गई, बहती गंगा को समर्पित लोगों की आस्था से जगमक दिपक, आरती की ध्वनि और चारों और लाइटों से सजा हुआ शहर। ये मेरा सौभाग्य नहीं तो क्या है, कि मुझे घर बैठे ड्रोन एंगल से सब दिख रहा था। फिर अचानक मेरी नजर मेरे छत के खंबे पर बैठे उस कौवे पर पड़ी। जो सुबह भी वही था, और अभी भी। पर इस बार मैं थोड़ा अचंबित हो गई, क्योंकि अक्सर इतने समय तक पक्षीयों को मैने रात में अपने घर लौटते देखा है। फिर सोचा कहीं वो मम्मी और पूवर्ज वाली बात सच तो नहीं
! मैं धीरे से जा रही थी कि मैने गंगा आरती में चल रहे गीत ( राम राम जय राजा राम) के बोलों को किसी के मुख से दोहराने की आवाज सुनी । अचानक मुझे आभास हुआ कि ये बोल वो कौवा दोहरा रहा है। मैं स्तब्ध रह गई, और कुछ प्रतिक्रिया देने से पूर्व ही उस कौवे ने मुझे देख लिया। मैं घबकारक नीचे भाग गई और पूरी रात इस दुविधा में बनी रही कि घरवालों को कैसे बताऊं, कहीं ये लोग मुझे पागल तो नहीं समझेंगे और परेशान होने के साथ ड़र अलग जाएंगे। मेरे मन में अलग – अगल विचार आ रहे थे, कहीं ये किसी प्रकार का तोता तो नहीं, या फिर किसी तोते और कौवे की प्रयोगात्मक कोई नई नस्ल, जैसे – तैसे मेरी रात कटी। फिर तो मैं छत पर जाने के हर काम को नजर अंदाज करती रही, ये सोच कर की यह मेरा एक बहम है, और मुझे यह बहम दुबारा होने से यकिन नहीं करना हैं। लेकिन दिवाली की शाम मेरे लाख मना करने पर दिपक छत पर रखने के लिए मम्मी ने मुझे छत पर भेज ही दिया। मैं दबे पांव धीरे से अंतिम सीधी के दोनों छोर पर दिपक रखा ही थी, कि मुझे वो कौवा फिर दिख गया और जैसे ही मैने भागने के लिए पैर बढाया वो बोला, ठहरों ! मुझसे डरों मत। मैने अबोध बच्चे की तहर पीछे देखा और पूछा, आप कौन हो और यहां क्यों आए हो, और मुझसे क्या चाहते हों। वो कौवा बोला, मैं  काकभुशुण्डि ऋषि हूँ। मैंने कहां कौन काकभुशुण्डि ? शायद यहीं हमारी विडंबना है , कि जिस देश में हम रहते है, वहां के शास्त्रों और उनके पात्रो के विषय में हमें इतने बड़े होने पर भी नहीं पता है। उस कौवे ने कहां,

चिरंजीवी मेरा जीवन बीमा है,, काल चक्रों से परे, घुमने फिरने की मेरी न कोई सीमा हैं।

मैं रामायण का पात्र हूँ, और नारायण का बचपन का बाल मित्र हूँ।  बीआर. चौपड़ा रामायण तो देखी ही होगी?

 मैंने कहा हां थोड़ी बहुत। सामने से जवाब आया अरे रे रे… यहीं है, कलयुग की सच्चाई।।

वो बोले मैं तो यहां देखने आया था कि कलयुग में राम राज्य की स्थापना कैसे हो रही है, मैं गया था अयोध्या वहां से आ गया, जब तक रुका सोचा गंगा जल ग्रहण कर लूं, फिर यहां बैठा हुआ, राम नाम में मोहित हो गया तब तक तुमने देख लिया। इसलिए उस दिन से अपनी दिव्य शक्तियों से तुम्हारी स्मृति से ये निकालना चाहता था। क्योंकि कलयुग है, और ज्ञात हुआ तुम पत्रकार हो इस घटना के विषय में पूरी दुनिया को बता दिया तो? लेकिन उससे पहले सोचा तुम्हें सच बताना आवश्यक है, क्योंकि तुम तो मुझे अपना पूर्वज समझ रही थी, गलती से छत पर नहीं आती तो मुझे अपना दादाजी बताकर फेसबुक से फेमस हो जाती। मैंने कहा नहीं नहीं मैं ऐसा कुछ नहीं करती पर मैं यकिन कैसे कर लूं, आप सच बोल रहे हो ? कहीं ये कोई मजाक तो नहीं? मार्केट में आजकल बहुत से एक्सपेरिमेंट होने लगे हैं! उन्होने कहां राम भक्त कभी झूठ नहीं बोलता, एक बार मेरे साथ जय सिया राम बोलो, जैसें से मैने यह दोहराया मेरी दुनिया बदल गयी। मैं एक बस में थी, जिसकी हालत बहुत खराब थी, दिन में सूर्य की रोशनी से परे चारों और अंधेरा था, तभी बस में कुझ हमलावर खुस गए और एक लड़की को ले गए फिर भी सब मौन थें, मैं घबरा गयी आस – पास देखने पर मुझे मेरे दो मित्र दिखे, जो मुझे और ये सब घटनाएं देख कर भी मौन थे। मेरे बगल में बैठी महिला से मैंने पूछा कि  सब क्या हो रहा है, पूछने पर उसने बहुत कठोर स्वर से जवाब देते हुए कहां नहीं पता है,तो बता देती हूँ जहां से बस उतारेगी वहां से बचकर आना मुश्किल है, ये आम बात है, यह घोर कलयुग है जो नर्क से कम नही हैं। मैंने भगवान से वापस जाने की प्रार्थना करते हुए आंखे बंद कर ली। कुछ देर बाद मैनें बहुत डरते हुए आँखे खोली और पाया कि मैं लाल आसमान से घिरे एक स्थान पर हूँ, मैं बस आश्चर्य एवं घर का मार्ग ढुंढने के उद्धेश्य से आगे बढ़ रही थी, अचानक बहुत ज्यादा रोने की आवाज आने लगी, हाथियों के तेज गर्जन  और लोगों की तेज चिल्लाने की आवाजे आ रही थी। मेरी नजर सामने खड़ी एक चट्टान पर पड़ी जहां रथ पर सवार अस्त्रों से लड़ रहे, दो योध्दायों की छाया बनी, तभी सर के ऊपर से एक पक्षी गया जिसने हंसते हुए कहां द्वापर में स्वागत है। मुझे वो दृश्य देख कर काकभुशुण्डि से कही वो बात याद आई, और एक बार फिर मैंने अपनी आंखे बंद की। कुछ देर बात आंखे खोलने पर मुझे चारों ओर नीला आवरण दिखा, एक बार फिर मैं किसी ऐसी जगह पर थी, जिससे मैं परिचित नहीं थीं। मैंने कुछ कदम ही आगे बढाएं थे कि देखा, ऊपर चट्टान पर जंगल बसा हुआ है, जहां दक्षिण की ओर दो बहुत लंबे कद के दो पुरुष पीठ पर धनुष लादे हुए जा रहे हैं। इससे पहले मैं कुछ समझती, वह दृश्य ओझल हो गया और मेरे चारों तरफ झरने, खुबसूरत पहाड़, पेड़ो पर चहचहाते पक्षियों का नजारा बन गया, ऐसी सुंदरता की कल्पना भी मेरे लिए करना मुश्किल हैं, मुझे लगा रहा था कि यही स्वर्ग है, तभी काकभुशुण्डी की आवाज सुनाई दी, देख लिया यही सत्य है, मैं मन ही मन हाथ जोड़कर कृतर्ज्ञ होकर ईश्वर से इस दृश्य को दिखाने के लिए आभार स्वरुप प्रार्थना करने लगी। कुछ देर बाद मेरी आंखे खुली और मैंने खुद को उसी बस में पाया जिससे मैं घर जा रही थी। आखिरकार ये मेरा स्वप्न था, तभी चलती बस से मेरी नजर ढलते सूर्य की किरणों पर पड़ी जो मां गंगा के बहते जल की सुंदरता को और मनोहर बना रही थी ., उसी समय मैंने एक देखा कि एक कौवा एक पत्थर के निकट बैंठा पानी पी रहा था। 

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